मलाल तोह इस बात का है
हम तुझे हाथों से फिसलते देख रहे,
मगर कुछ कर नहीं सकते
तुझे ज़िन्दगी बनते देखा था |
अब ज़िन्दगी से निकलते देख रहे,
मगर कुछ कर नहीं सकते |
या तोह खर्च हो जाऊ
या फिर कर्ज हो जाऊ,
मलाल बस ये न रहे
तेरे प्यार में कहीं व्यर्थ हो जाऊ |
अब क्या याद करू तुझे
बस याद ही बाकी है |
तेरी याद भी आये तोह
बस यादें ही आये |
हर पाप करते जाता हूँ मैं
सब मे तुझे ढूंढते जाता हूँ मैं |
कभी अक्स मिलता नहीं तेरा किसी में
शायद मेरे भगवानो में दर्ज़ा है तेरा,
तभी इतने पाप के बाद भी जीये जाता हूँ मैं |
वो मेरा नहीं
तोह क्या ग़म है |
वो मुझे मिला
यही क्या कम है |
हमारी दहलीज़ पर
तमीज माँगा उसने,
जिसे दूसरे की बाहों मे
तौहीन होना पसंद है |
न मिला मुझे कुछ ख़ास इस दुनिया से
पर मैं अपना हुनर कमाल लाया हूँ |
जो मान लेते है सबकी बातें आसानी से,
उनके लिए कुछ दिमागी सवाल लाया हूँ,
तुमने सोचा वो कौन है
जो कहते है तुमसे तुम्हारा धरम खतरे में है |
अगर उनकी बात को मान लिया है तुमने,
तुम्हारी कमजोर आस्था के लिए
अपने भगवन से तुम्हारे लिए ऐतबार लाया हूँ |
और अगर फिर भी जो तुम मुझसे कहो
दिमाग काम चला और भीड़ का हिस्सा बन जा
मैं स्वयं अपने क़त्ल का सामान लाया हूँ |
जो जुमले कस्ते है मुझपे
उनके लिए मैं एक अपवाद हूँ |
जो थोड़ा बहुत समझते है मुझे
उनके लिए मैं एक संवाद हूँ |
तुम कभी न जान सकोगे
क्या चलता है मेरे भीतर,
मैं मेरे ही दिल और दिमाग के बीच
एक बहुत बड़ा विवाद हूँ |
मत बन मेरी खुदा
मै अपने खुदा से भी रूठा हूँ |
न समां मेरे दिल मे ,
मै अपने आत्मा से भी झूठा हूँ |
बर्बाद हो गए तेरे इश्क़ मे
हिज़्र तोह देख लिया,
अब हश्र देखना बाकी है |
कुछ दिन बचे है ज़िन्दगी के
समझाता रहता हूँ खुद को,
तुमने देख रखा है मेरी दीवानगी
अब तुझे मेरा क़ब्र देखना बाकी है |
तेरा दिल तोह है मेरे पास
तेरा शरीर है किसी और के पास,
मलाल तोह ये है की,
दिल से बड़ा कोई मेल नहीं और
शरीर से बड़ा कोई बैर नहीं |
कितने ही लोग मिले
हमें सलीके सिखाने के लिए,
पर किसी ने हमारे अंदर नहीं झाँका
सबने हमें दुनिया की नज़रों से ही देखा |
प्रेम के अंधकार में पड़े इंसान में शिक्षा के रौशनी की कमी होती है |
मुझे मेरे ही उमीदों ने रुलाया है |
कभी तोह तू मुझे समझाया कर,
जो नहीं समझू तेरी जुबानी
कभी इशारो में बताया कर,
तुझसे कितनी उमीदे बाँध रखी है |
मैंने क्या बताऊ,
कभी तोह तू भी मुझे अपना बुलाया कर |
मैं क्या लगता हूँ उसका
वो कभी खुल के बताता नहीं है |
पर नज़रें मिलाने से वो,
कभी घबराता नहीं है |
मैं कैसे बताऊ उसे,
क्या है मेरी बेचैनी
वो अपने हाथ तो अक्सर बढ़ाता हैं
पर कभी गले से लगाता नहीं हैं |
सब जिसे बरसात कहते
उसे मैं तुम कहता हूँ |
सब जिसे सपना कहते,
उसे मैं ख्वाब कहता हूँ |
सब जो सपने में अपना भविष्य देखे,
उसमे मैं तुम्हें ढूंढता हूँ |
कैसे बताऊँ कैसी हैं रातें मेरी
वही कमी जो दिन भर रहती,
मिलना तय है हमारा मैं कर चूका हूँ |
या तो उस खुदा से लड़ जाऊंगा या खुदा बन जाऊंगा |